राजगिर या राजगृह पटने से लगभग ६० मील पूर्व में एक दर्शनीय स्थान है। महाभारत काल में यह जरासंघ की राजधानी था। उसके महलों और अखाड़े के खंडहर आज भी वहाँ बतलाए जाते हैं। बौद्ध काल में बिंबिसार ने इसे मगध की राजधानी बनाया था। बिंबिसार के पुत्र अजातशत्रु के समय में राजधानी राजगिर से पटना चली गई। राजगिर में तीर्थकर महावीर और गौतम बुद्ध बहुत दिन तक रहे थे। गौतम बुद्ध अपना वर्षाकाल यहीं बिताते थे। गौतम बुद्ध के महानिर्वाण के बाद बौद्धों की प्रथम सभा इसी स्थान पर हुई थी। इसी के निकट नेज भंडार में गौतम बुद्ध के जीवनकाल में भी बौद्धों की एक सभा हुई थी। अत: राजगिर बौद्धों और जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थ है। हिंदुओं का भी राजगिर तीर्थस्थान है। पुरुषोत्तम मास में सनातधर्मी यात्री मास भर तक यहाँ आते रहते हैं और कुंडो में स्नान करते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी राजगिर उत्तम स्थल है। यहाँ के गरम जल के कुंडों में स्नान करने से अनेक रोग, विशेषत: चर्मरोग और वातरोग, दूर हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि गरम कुंडों के जल में गंधक है। पहले यहाँ ठहरने का विशेष प्रबंध नहीं था, पर अब अनेक धर्मशालाएँ, विश्रामघर, अतिथिघर और होटल बन गए हैं।

कुंड - राजगिर में अनेक कुंड, कुछ तो गरम जल के और कुछ ठंढे जल के, हैं। ऐसा कहा जाता है कि गौतम बुद्ध इन कुंडों में स्नान करते थे।इन कुंडों में ब्रह्मकुंड, व्याराकुंड, गंग-जमुना-कुंड, अनंतकुंड, सप्तधारा तथा काशीधारा अधिक महत्व के हैं। एक छोटी नदी, 'सरस्वती', भी यहाँ बहती है। सरस्वती नदी से आधे मील की दूरी पर एक दूसरी नदी वैतरणी है, जिसके तट पर पितरों को पिंडदान दिया जाता है।

मंदिर - ब्रह्मकुंड के समीप हंसतीर्थ पर कई देवताओं की मूर्तियाँ हैं। ब्रह्मकुंड के दक्षिण में शिवमंदिर है। ब्रह्मकुंड के पश्चिम में दत्रात्रेय मंडप में कई देवमूर्तियाँ हैं। मार्कडेयकुंड के दक्षिण में कामाक्षी मंदिर है। वैतरणी नदी के तट पर माधव के और महादेव के मंदिर हैं। नदी और गोदावरी धारा के संगम पर जरादेवी का मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि जरासंघ इसी देवी का पूजन करता था। एक समय राजगिर में १८ बौद्ध बिहार थे, जिनका अस्तित्व आज नहीं है। यहाँ बौद्धों के कई मंदिर हैं, जिनमें बर्मा, जापान, थाईलैंड इत्यादि के मंदिर प्रमुख हैं। आसपास की पहाड़ियों पर जैनियों के अनेक मंदिर हैं।

पर्वतमालाएँ - राजगिर में अनेक पर्वतमालाएँ हैं, जिनमें वैमार पर्वत पर पाँच जैन मंदिर और सोमनाथ-सिद्धनाथ शिवलिंग हैं। विपुलाचल पर्वत पपर चार जैन मंदिर और एक गणेश मंदिर है। रत्नागिरि पर्वत पर एक जैन मंदिर है, जिसमें स्व्रुातनाथ आदि के चरण च्ह्रिहैं। उदयगिरि पर्वत पर दो जैन मंदिर तथा दो चरणपादुकाएँ हैं। यहाँ नाटकेश्वर महादेव का मंदिर भी है। स्वर्णगिरी पर, जिसे श्रमणगिरि भी कहते है, जो जैन मंदिर हैं। अन्य दर्शनीय स्थानों में तपोबल, गिरिव्रज, गृद्धकूट, जहाँ गौतम बुद्ध वर्षा काल बिताते थे, अधिक उल्लेखनीय हैं। आसपास की भूमि बड़ी उपजाऊ है और बिहार का सर्वश्रेष्ठ धान इसी भूमि में उपजता है। सिलाव का चिउरा सुप्रसिद्ध है। राजगिर के आसपास की पहाड़ियों को राजगिर पहाड़ी कहते हैं। इन पहाड़ियों की औसत ऊँचाई लगभग एक हजार फुट है। सबसे ऊँची पहाड़ी १,४६२ फुट की है। इसी पहाड़ी की घाटियों में प्राचीन राजगिर नगर बसा था। पहाड़ी में बौद्ध काल की बनी कई गुफाएँ हैं।श् (फूलदेव सहाय वर्मा)