रसेल, ई. जे. का जन्म ३१ अक्टूबर, सन् १८७२ को इंग्लैंड में हुआ। इनकी शिक्षा युनिवर्सिटी कालेज, वेल्स, तथा विक्टोरिया युनिवर्सिटी, मैनचेस्टर, में हुई। सन् १८९८-१९०१ तक ये विक्टोरिया युनिवर्सिटी में रसायन के अध्यापक भी रहे। सन् १९०९ में इनकी नियुक्ति रोथैम्स्टे परीक्षण केंद्र में मृत्तिका रसायनज्ञ के रूप में हुई। शीघ्र ही सन् १९१२ में ये इस केंद्र के निदेशक नियुक्त हुए और तब से १९४३ ई. तक उसी पद पर कार्य करते रहे। इसी वर्ष इन्होंने ''सॉयल कंडिशन्स ऐंड प्लांट ग्रोथ'' (Soil Conditions and Plant Growth) नामक पुस्तक में इन्होंने पहली बार ऐसे अनेक तथ्यों को स्थान दिया जो सर्वथा नूतन थे। फलत: इस पुस्तक का बहुत ही स्वागत हुआ है।

इन्होंने नाइट्रोजनीय उर्वरकों से होनेवाली क्षतियों के संबंध में, फॉस्फेट उपलब्धि के विषय में तथा भूमि उपयोगी जीवाणुओं का विनाश करनेवाले प्रोटोजोआ भक्ति भक्ति (Protozoa) नामक प्राणी पर कार्य किया है। इन्होंने और भी कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें ''वोबर्न प्रायोगिक केंद्र में होनेवाले प्रयोगों के ५० वर्ष'' (Fifty Years of Field Experiments at Woburn) नामक पुस्तक उनके अनुभवों पर आधारित होने के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण है।

अनेक संस्थाओं ने इन्हें मान उपाधियों से विभूषित किया है। सन् १९१८ में इन्हें ओ. बी. ई. तथा सन् १९२२ में ''नाइट'' की पदवी प्राप्त हुई। सन् १९४९ में ब्रिटिश ऐसोसियेशन ने इन्हें अपना सभापति चुनकर प्रथम कृषि रसायनज्ञ का सम्मान दिया था।

सन् १९३७ में ये भारत भी आए थे और नैशनल ऐकैडेमी ऑव साइंसेज़ के छठे वार्षिक अधिवेशन में इन्होंने भाषण भी किया था। (शिवगोपाल मिश्र.)