अंकन (लिपि) इसे क्यूनिफार्म लिपि या कीलाक्षर भी कहते हैं। छठी-सातवीं सदी ई.पू. से लगभग एक हजार वर्षों तक ईरान में किसी-न-किसी रूप में इसका प्रचलन रहा। प्राचीन फारसी या अबेस्ता के अलावा मध्ययुगीन फारसी या ईरानी (३०० ई.पू.-८०० ई.) भी इसमें लिखी जाती थी। सिकंदर के आक्रमण के समय के प्रसिद्ध बादशाह दारा के अनेक अभिलेख एवं प्रसिद्ध शिलालेख इसी लिपि में अंकित है। इन्हें दारा के कीलाक्षर लेख भी कहते हैं। इस लिपि का विकास मेसोपोटामिया एवं वेबीलोनिया की प्राचीन सभ्य जातियों ने किया था। भाषाभिव्यक्ति चित्रों द्वारा होती थी। ये चित्र मेसोपोटामिया में कीलों से नरम ईटों पर अंकित किए जाते थे। तिरछी-सीधी रेखाएँ खींचने में सरलता होती थी, किंतु गोलाकार चित्रांकन में कठिनाई। साम देश के लोगों ने इन्हीं से अक्षरात्मक लिपि का विकास किया जिससे आज की अरबी लिपि विकसित हुई। मेसोपोटामिया और साम से ही ईरानवालों ने इसे लिया। कतिपय स्रोत इस लिपि को फिनीश (फोनीशियन) लिपि से विकसित मानते हैं। दारा प्रथम (ई. पू. ५२१-४८५) के खुदवाए कीलाक्षरों के ४०० शब्दों में प्राचीन फारसी के रूप सुरक्षित हैं। क्यूनिफार्म लिपि या कीलाक्षर नामकरण आधुनिक है। इसे प्रेसिपोलिटेन ( Presipolitain) भी कहते हैं। यह अर्ध वर्णात्मक लिपि थी। इसमें ४१ वर्ण थे जिनमें ४ परमावश्यक एवं ३७ ध्वन्यात्मक संकेत थे।

(मो. ला. ति.)