रसखानि कविवर रसखानि दिल्ली के एक खानदानी पठान थे। 'प्रेमवाटिका' में अपना परिचय इन्होंने स्वयं इस प्रकार दिया है -

''विद्रोह की आग भड़की देखकर दिल्ली को इन्होंने त्याग दिया। साथ ही, बादशाही खानदान का ग़्राूर भी छोड़ दिया।'' पर इस संकेत से यह पता नहीं चलता कि किस बादशाही खानदान के साथ इनका रिश्ता था।

रसखानि का जन्म सवत् १६१५ के आसपास माना जाता है। संवत् १६७१ में इन्होंने 'प्रेमवाटिका' लिखी थी, जिसका प्रमाण यह है :

विधु, सागर, रस, इंदु सुभ, वरस सरस रसखानि।

प्रेमवाटिका रचि रुचिर, चिर हिय हरषि बखानि।।

एक मत यह भी है कि रसखानि का असली नाम सैयद इब्राहीम था, और यह पिहानी के रहनेवाले थे। परंतु '२५२ वैष्णवन की वार्ता' में इस बात का कोई उल्लेख नहीं है। यदि ऐसा होता तो यह अपने आपकों पठान न कहकर सैयद लिख देते, और दिल्ली के स्थान पर पिहानी। पिहानीवाले सैयद इब्राहीम एक दूसरे ही कवि थे और उनका भी उपनाम रसखानि था।

रसखानि ने इस्लाम को छोड़कर वैष्णव धर्म स्वीकार कर लिया था। गोसाईं विट्ठलनाथ के यह कृपापात्र शिष्य थे। '२५२ वैष्णयन की वार्ता' में इनकी भी वार्ता अर्थात् कथा दी गई है।

सांसारिक प्रेम की सीढ़ी से चढ़कर रसखानि भगवदीय प्रेम की सबसे ऊँची मंजिल तक कैसे पहुँचे, इस संबंध की दो आख्यायिकाएँ प्रचलित हैं। 'वार्ता' में लिखा है कि रसखानि पहले एक बनिये के लड़के पर अत्यंत आसक्त थे। उसका जूठा तक यह खा लेते थे। एक दिन चार वैष्णव बैठे बात कर रहे थे कि भगवान् श्रीनाथ जी से प्रीति ऐसी जोड़नी चाहिए, जैसे प्रीति रसखानि की उस बनिये के लड़के पर है। रसखानि ने रास्ते में जाते हुए यह बात सुन ली। उन्होंने पूछा कि 'आपके श्रीनाथ जी का स्वरूप कैसा है?' वैष्णवों ने श्रीनाथ जी का एक सुंदर चित्र उन्हें दिखाया। चित्रपट में भगवान् की अनुपम छवि देखकर रसखानि का मन उधर से फिर गया। प्रेम की विह्वल दशा में श्रीनाथ जी का दर्शन करने यह गोकुल पहुँचे। गोसाई विट्ठलदास जी ने इनके अंतर के परात्पर प्रेम को पहचानकर इन्हें अपनी शरण में ले लिया। रसखानि श्रीनाथ जी के अनन्य भक्त हो गए।

दूसरी आख्यायिका यह है कि रसखानि एक रूपगर्विता स्त्री पर आसक्त थे। पर वह इनके प्रेम की सदा उपेक्षा ही करती थी। एक दिन श्रीमद्भागवत के फ़ारसी उल्थे में ब्रजगोपिकाओं के आत्यंतिक विरह का प्रसंग पढ़ते-पढ़ते यह सोचने लगे कि नंद के जिस फ़र्जद पर हज़ारों हसीन गोपियाँ जान दे रही हैं, क्यों न उसी के साथ प्रीति जोड़ी जाए। जीवन का रास्ता मुड़ गया। 'प्रेमवाटिका' में यह स्वयं लिखते हैं -

तोरि मानिनी तें हियो, फोरि मोहिनी गान।

प्रेमदेव की छबिहिं लखि, भय मियां रसखान।।

इनकी कविताओं के दो संग्रह प्रकाशित हुए हैं - 'सुजान रसखान' और 'प्रेमवाटिका'। 'सुजान रसखान' में १३९ सवैये और कवित्त है। 'प्रेमवाटिका' में ५२ दोहे हैं, जिनमें प्रेम का बड़ा अनूठा निरूपण किया गया है। रसखानि के सरस सवैय सचमुच बेजोड़ हैं। सवैया का दूसरा नाम 'रसखानि' भी पड़ गया है। शुद्ध व्रजभाषा में रसखानि ने प्रेमभक्ति की अत्यंत सुंदर प्रसादमयी रचनाएँ की हैं। यह एक उच्च कोटि के भक्त कवि थे, इसमें संदेह नहीं। (वियोगी हरि.)