रवि वर्मा का जन्म १८४८ में त्रावणकोर (तिरुवांकुर) में हुआ था। चित्रकला की शिक्षा उन्होंने मदुरा के चित्रकार अलाग्री नायडू तथा विदेशी चित्रकार श्री थियोडोर जेंसन से, जो भ्रमणार्थ भारत आए थे, पाई थी। दोनों यूरोपीय शैली के कलाकार थे। श्री वर्मा की चित्रकला में दोनों शैलियों का सम्मिश्रण दृष्टिगोचर होता है। उन्होंने लगभग ३० वर्ष भारतीय चित्रकला की साधना में लगाए। बंबई में लीथोग्राफ प्रेस खोलकर उन्होंने अपने चित्रों का प्रकाश किया था। उनके चित्र विविध विषय के हैं किंतु उनमें पौराणिक विषयों के और राजाओं के व्यक्ति चित्रों का आधिक्य है। विदेशों में उनकी कृतियों का स्वागत हुआ, उनका सम्मान बढ़ा और पदक पुरस्कार मिले। पौराणिक वेशभूषा के सच्चे स्वरूप के अध्ययन के लिए उन्होंने देशाटन किया था। डाक्टर आनंद कुमारस्वामी ने उनके चित्रों का मूल्यांकन कर कलाजगत् में उन्हें सुप्रतिष्ठित किया। ५७ वर्ष की उम्र में १९०५ में उनका देहांत हुआ। (पारसनाथ सिंह)