रमाबाई अंबेडकर (१८९८-१९३७ ई.) इनका जन्म १८९८ में मुंबई के खड़ेगाँव में एक साधारण परिवार में हुआ। उनके पिता भिकूजी वलंगकर रामानंदपंथी थे। पिता से रमाबाई ने प्राकृत गीता, रामायण, ज्ञानेश्वरी आदि ग्रंथ पढ़े।
प्रारंभ से ही वह कन्याओं को एकत्र कर मराठी में ग्रंथ पढ़कर सुनाया करतीं। १९०७ में उनका विवाह भीमराव अंबेडकर से (जो आगे चलकर डॉ. भीमराव अंबेडकर के नाम से विख्यात हुए) केवल नौ वर्ष की अवस्था में हुआ।
डॉ. अंबेडकर के निकट रहनेवाले जानते हैं कि उनके जीवन के निर्माण में रमाबाई का कितना अधिक हाथ था। वे आदर्श गृहिणी थीं। कहते हैं कि उन्होंने अपने सास श्वसुर के गृह में उपले तक पाथे और बराबर भोजन बनाकर, कपड़े धोकर पति को आगे बढ़ने में सहायता दी। दिन भर उनका हाथ खाली नहीं रहता था। केवल ५० रु. मासिक में घर गृहस्थी का कार्य चला लेना रमाबाई का ही कार्य था। २ मार्च, १९३० ई. को नासिक में कालाराम मंदिर प्रवेश सत्याग्रह के समय, जो १९३५ तक चलता रहा, रमाबाई ने अनेक व्रत और उपवास सत्याग्रह की सफलता के लिए किए।
डॉ. अंबेडकर के विदेश में रहने पर रमाबाई घर का कार्य चलाती थीं। बैरिस्टरी की उनकी पढ़ाई के समय रमाबाई ने अपने श्रम की कमाई के पैसों से उनकी आर्थिक सहायता भी की थी।
समाजसेवा के क्षेत्र में रमाबाई का नाम महाराष्ट्र में आदर से लिया जाता है। उन्होंने महिलाओं में जागृति की भावना का संचार किया और अपने आदर्श से जनता को प्रोत्साहित किया। रमाबाई की चार संतानों में केवल एक जीवित है - यशवंतराय अबेडकर।
डॉ. अंबेडकर के साथ रमाबाई की भी बौद्ध धर्म में बहुत आस्था थी। (बोधानंद (भिक्षु))