रदर्फ़र्ड, अर्नेस्ट (Rutherferd, Ernest, सन् १८७१-१९३७) ब्रिटिश भौतिकविज्ञानी का जन्म न्यूज़ीलैंड के नेल्सन नगर में ३०, अगस्त सन् १८७१ को हुआ था। नयूज़ीलैड विश्वविद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद आपने केंब्रिज विश्वविद्यालय की कैवेंडिश प्रयोगशाला में सन जे.जे.टॉमसन की अध्यक्षता में विद्युत्कणों पर अनुसंधान कार्य किया। सन् १८९८ में २७ वर्ष की अवस्था में ही आप कैनाडा के मॉण्ट्रियल विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर नियुक्त हुए। सन् १९०७ मे आप मैचेस्टर में प्रोफेसर के पद पर आ गए। सन् १९१९ में आप कैबेंडिश प्रयोगशाला में प्रायोगिक भौतिकी के प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए। इसके साथ साथ सन् १९२० में आपने रॉयल इंस्टिट्यूशन के भौतिकी के प्रोफेसर के पद को भी सँभाला। तब से अपने मृत्युकाल (१९३७ ई.) तक आप केंब्रिज की इसी प्रयोगशाला में काम करते रहे।

अनुसंधान कार्य - सन् १९०३ में रसायनज्ञ फेडरिक सॉडी के सहयोग से रदर्फर्ड ने रेडियोऐक्टिवना के परमाणु विघटन के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। सन् १९११ में आपने ऐल्फ़ा कणों की बोछार कणों की बोछार को स्वर्णपत्र पर डालकर, उनके विक्षेप का अध्ययन किया और निर्विवाद रूप से यह सिद्ध किया कि परमाणु की लगभग सारी संहति तथा संपूर्ण धनविद्युत् आवेश उसके केंद्र पर सकरी सी जगह में स्थित हैं, जिस नाभिक (न्यूक्लियस, nucleus) का नाम दिया गया। इस प्रकार रदर्फर्ड ने ही परमाणु का आधुनिक स्वरूप निर्धारित किया। सन् १९१९ में आपने ऐल्फा कणों के आघात से नाइट्रोजन परमाणु को ऑक्सीजन में परिणत किया। प्रयोगशाला में एक मूल तत्व को दूसरे तत्व में बदलने का यह सर्वप्रथम दृष्टांत था। आप १९०३ ई. में रॉयल सोसायटी के सदस्य चुने गए, १९१४ ई. में आपको सर की उपाधि मिली तथा १९०८ ई में आपको रसायन का नोबेल पुरस्कार मिला। सन् १९२५ ई में आप रॉयल सोसायटी के अध्यक्ष चुने गए थे। ( अंबिका प्रसाद सक्सेना)