रज़िया, सुल्ताना सुल्ताना रज़िया सुल्तान इल्तुत्मिश की बेटी थी जो गुलाम वंश का एक मशहूर बादशाह हुआ है। वह अपने दोनों भाइयोें से अधिक योग्य और बहादुर थी। इसीलिए इल्तुत्मिश ने रज़िया को अपनी उत्तराधिकारिणी बनान का निश्चय किया। किंतु बादशाह की मृत्यु के बाद अमीरों ने अयोग्य राजकुमार रुक्नुद्दीन को राजगद्दी दी। कुछ महीनों बाद राजविद्रोह हुआ जिसके परिणामस्वरूप सन् १२३६ ई. में रज़िया राजसिंहासन पर बैठी। वह मरदाना लिबास पहनती, दरबार करती, लोगों की फरियादें सुनती, उनक इंसाफ करती और भली भाँति राज्य का प्रबंध करती थी। कई विरोधी अमीरों को मृत्युदंड देकर और अपने सहायकों को ऊँचे पद देकर उसने अपनी शक्ति बढ़ा ली। एक हबशी गुलाम याकूत के प्रति अधिकानुराग की प्रवृत्ति के कारण मलका से अमीर वजीर डाह करने लगे। लाहौर का शासक मलिक आइजउद्दीन विद्रोही हो गया। मलका ने उसपर चढ़ाई की। मलिक आइज़उद्दीन ने मलका से सुलह कर ली।

जब मलका दिल्ली वापस पहुँची तो मालूम हुआ कि भटिंडा के हाकिम मलिक अलतूनिया ने बगावत कर दी है। सुल्ताना रज़िया लश्कर लेकर भटिंडा की तरफ बढ़ी। याकूत अबशी इस लड़ाई में मारा गया और मलका गिरफ्तार करके भटिंडा भेज दी गई। अलतूनिया की फौजों ने दिल्ली पर कब्जा किया और एक सरदार बहराम शाह को तख्त पर बिठा दिया।

सुल्ताना रज़िया जब कैदी के रूप में भटिंडा पहुँची तो अल्तूनिया उसके सौंदर्य और बुद्धिमत्ता से आकृष्ट हुआ। दोनों का निकाह हुआ और दोनों ने सेना एकत्र कर दिल्ली पर हमला किया। रज़िया और अल्तूनिया की फौज ने बहराम शाह की फौज से हार खाई। दोनों भटिंडा लौट आए और कुछ कालोपरांत फिर शत्रु पर आक्रमण किया किंतु इस बार भी कैथल में उनकी हार हुई।

रज़िया और अल्तूनिया निर्वासित हाकर इधर उधर मारे मारे फिरे। अंत में जमीदारों ने उन्हें गिरफ्तार करके सुल्तान बहराम शाह के हवाले किया और उसने दोनों को कत्ल करवा दिया।

रज़िया सुल्ताना ने सन् १२३६ ई. से सन् १२४० ई. तक राज्य किया। (रजिया सज्जाद ज़हीर)