रघुवीर डाक्टर रघुवीर देश के प्रख्यात विद्वान् तथा राजनीतिक नेता थे। आप महान् कोशकार, शब्दशास्त्री तथा भारतीय संस्कृति के उन्नायक थे। एक और आपने कोशों की रचना कर राष्ट्रभाषा हिंदी का शब्दभांडार संपन्न किया, तो दूसरी ओर विश्व में विशेषत: एशिया में फैली हुई भारतीय संस्कृति की खोज कर उसका संग्रह एवं संरक्षण किया। राजनीतिक नेता के रूप में आपकी दूरदर्शिता, निर्भीकता और स्पष्टवादिता कभी विस्मृत नहीं की जा सकती। आपका जन्म दिसंबर सन् १९०२ में हुआ और निधन १४ मई, १९६३ ई. को। आपकी शिक्षा लाहौर में हुई। बाद में उच्चशिक्षाश् के अध्ययन के निमित्त आप विदेश गए। लाहौर विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद आपने लंदन से पी-एच.डी. और हालैंड विश्वविद्यालय से डी.लिट् की उपाधि प्राप्त की। सन् १९३१ में आपने डच भाषा में उपनिवेशवाद के विरुद्ध क्रांतिसमर्थक ग्रंथ लिखा, जिससे हिंदेशिया के स्वतंत्रता आंदोलन को विशेष प्रेरणा एवं शक्ति मिली। सन् १९३४ में 'इंटरनेशनल एकेडमी ऑव इंडियन कल्चर' नामक संस्था की स्थापना कर भारतीय संस्कृति के अनुसंधान का कार्य आरंभ किया। इस कार्य के लिए आपने योरोप, सोवियत संघ, चीन तथा दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की अनेक बार यात्राएँ कीं। इन यात्राओं में आपने भारतीय संस्कृति विषयक अपन विशेष दृष्टि तो रखी ही, साथ ही उन देशों की राजनीतिक विचारधारा तथा भारत पर पड़नेवाले संभावित प्रभावों को भी ध्यान में रखा। विगत दशकों में भारतीय संस्कृति का संदेश आपने जिस प्रभावशाली ढंग से दिया, उतना किसी ने नहीं किया। आप महान् कोशकारश् तथाश् भाषाविद् थे। आपने प्राय: छह लाख शब्दों की रचना की है। आपकी शब्दनिर्माण की पद्धति वैज्ञानिक है। आपने विज्ञान की प्रत्येक शाखा के शब्दों की कोशरचना की है। सन् १९४३ ई. में आपने आंग्ल-हिंदी पारिभाषिक शब्दकोश का प्रणयन और प्रकाशन किया। सन् १९४६ में मध्यप्रदेश सरकार ने आपको हिंदी और मराठी के वैज्ञानिक ग्रंथों की रचना का कार्य सौपा, जिसे आपने पूर्ण दृढ़ता तथा योग्यता से पूरा किया। मंगोलिया, हिंदेशिया, हिंदचीन, थाईलैंड आदि अनेक देशों से आप प्रभूत मात्रा में पांडुलिपियाँ तथा सांस्कृतिक सामग्री ले आए थे, जो आपकी दिल्ली स्थित भारतीय संस्कृति की अंतर्राष्ट्रीय अकादमी में सुरक्षित है। भारतीय संस्कृति के स्वरूप तथा उसके विश्वव्यापी प्रचार प्रसार के परिचायक अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों की भी आपने रचना की है। असाधारण विद्वत्ता तथा बहुमुखी प्रतिभा के कारण आप सन् ५२ और ५६ में राज्यसभा के सदस्य चुने गए। इसके पूर्व राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के करण सन् १९४१ में अपको कारावास का दंड मिला। राष्ट्र की स्वाधीनता के पश्चात् उसके निर्माण में आपका सदैव सक्रिय सहयोग रहा। राजनीतिक दृष्टि से राष्ट्र के गौरव को बनाए रखने के लिए आपने समय समय पर कांग्रेस की दलगत नीति की कटु आलोचना की। अपने राष्ट्रभाषा हिंदी को प्रतिष्ठित करने का आंदोलन ही नहीं किया अपितु उसके आधार को भी पुष्ट और प्रशस्त किया। भारत के आर्थिक विकास के संबंध में भी आपने पुस्तकें लिखी हैं और उनमें यह मत प्रतिपादित किया है कि वस्तु को केंद्र मानकर कार्य आरंभ किया जाना चाहिए। संविधान की शब्दावली के कारण आपका यश सारे देश में फैल गया था। आप अनेक वर्षों तक संसदीय हिंदी परिषद् के मंत्री थे। सरकर की प्रतिरक्षा, चीन, कश्मीर तथा भाषानीति आदि के संबंध में कांग्रेस से आपका मतभेद हो गया और आप कांग्रेस दल से पृथक् हो गए। भारतीय कांग्रेस से अलग हो आप जनसंघ में सम्मिलित हुए और इसके अध्यक्ष चुने गए। सन १९६२ में आपने लोकसभा का चुनाव लड़ा था किंतु पराजित हो गए। भारतीय जनसंघ को आपके नेतृत्व में नवीन शक्ति, प्रेरणा तथा मान प्राप्त हुआ। प्रबल राष्ट्रप्रेम, प्रगाढ़ राष्ट्रभाषा प्रेम तथा भारतीय संस्कृति के पुनरुद्धारक के रूप में डा. रघुवीर सदा सर्वदा श्रद्धापूर्वक स्मरण किए जाएँगे। भारतीय साहित्य, संस्कृति और राजनीति के क्षेत्र में आपकी देन विशिष्ट एवं उल्लेख्य हैं।श्श् (लक्ष्मीांकर व्यास)