रघुनाथ भट्ट गोस्वामी पूर्व बंग के रामपुर ग्राम के निवासी तपन मिश्र श्री गौरांग के आदेश के काशी में आ बसे। यहीं सं. १५६२ में रघुनाथ भट्टाचार्य का जन्म हुआ। जब श्री गौरांग काशी आए, मिश्र जी के यहाँ भिक्षा करते तथा उनकी सेवा करते। रघुनाथ ने संगीत, अनेक शास्त्रों तथा भागवत का यहीं अध्ययन किया। माता-पिता की मृत्यु पर गृहत्यागी हो पुरी चले गए और गदाधर प्रभु का साधन-साध्य-तत्व तथा भागवत पर आठ महीने तक व्याख्यान सुना। सं. १५८६-७ में री गौरांग ने इन्हें कृष्णकथा जनसाधारण में सुनाने तथा भागवत कथा का प्रचार करने वृंदावन भेजा। श्री गोविंद देव जी के मंदिर में बैठकर यह कथा कहने लगे। यह परम भक्त, विद्वान्, संगीतज्ञ तथा मधुरकंठ थे अत: श्रोताओं की भीड़ जमने लगी। इन्होंने जीवन भर यही कार्य किया। इनका शरीरपात आश्विन शुक्ल ११, १६३६ वि. को हुआ। इनकी समाधि श्रीगोविंद देव जी के मंदिर के दूसरी ओर सेठ जी के मंदिर के पास है। ((स्व.) ब्रजरत्नदास.)