रंभा कश्यप तथा प्राधा की कन्या, अप्सराओं में विख्यात सुंदरी कुबेर की सभानर्तकी। शुकदेव जी से इसका संवाद रंभा-शुक-संवाद नाम से प्रसिद्ध है। यह तुंबरु (महा.उ., १०/११/११२) या नलकूबर की पत्नी थी। जब यह अभिसारिका के रूप में नलकूबर के पास जा रही थी तो राह में रावण ने इसके अभिसार का परिहास किया। रंभा ने उसे शाप दे दिया जिससे उसका वध हुआ (महा.व. २६४/६८)। इंद्र के संकेत पर विश्वामित्र को तपभ्रष्ट करने के प्रयास में मुनि द्वारा शापित होकर यह शिला बन गई। श्वेत मुनि ने उसका उद्धार किया। (रामज्ञा द्विवेदी)