रंग क्या है इस विषय पर वैज्ञानिकों तथा दार्शनिकों की जिज्ञासा बहुत समय से रही है, परंतु इसका व्यवस्थित अध्ययन सर्वप्रथम न्यूटन ने किया। यह बहुत काल से ज्ञात था कि सफेद प्रकाश काँच के प्रिज़्म से देखने पर रंगीन दिखाई देता है। न्यूटन ने इसपर तत्कालीन वैज्ञानिक यथार्थता के साथ प्रयोग किया। एक अँधेरे कमरे में छोटे से छेद द्वारा सूर्य का प्रकाश आता था। यह प्रकाश के एक प्रिज़्म काँच द्वारा अपवर्तित (refract) होकर सफेद प्रकाश के स्थान पर इंद्रधनुष के सात रंग दिखाई दिए। ये रंग क्रम से लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी थे। जब न्यूटन ने प्रकाश के मार्ग में एक और प्रिज़्म पहले वाले प्रिज़्म से उल्टा रखा, तो इन सातों रंगों का प्रकाश मिलकर पुन: सफेद रंग का प्रकाश बन गया।
इस प्रयोग से न्यूटन से यह निष्कर्ष निकाला कि सफेद रंग प्रिज़्म द्वारा सात रंगों में विभाजित हो जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि जो प्रकाश हमें सफेद रंग का दिखाई देता है। वह वास्तव में सात रंगों के प्रकाश से मिलकर बना है। न्यूटन ने एक गोल चकती को इंद्रधनुष के सात रंगों से उसी अनुपात में रंग दिया जिस अनुपात में वे इंद्रधनुष में हैं। इस चकती को तेजी से घुमाने पर यह सफेद दिखाई देती थी। इससे भी सिद्ध होता है कि सफेद प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना है।
प्रकाशस्रोत का रंग - लोहे का एक टुकड़ा जब धीरे-धीरे गरम किया जाए तब उसमें निम्न परिवर्तन दिखाई देता है: पहले तो वह काला ही दिखाई पड़ता है, फिर उसका रंग लाल होने लगता है। यदि उसका ताप बढ़ाते जाएँ तो उसका रंग क्रमश: नारंगी, पीला इत्यादि होता हुआ सफेद हो जाता है। जब लोहा कम गरम होता है तब उसमें से केवल लाल प्रकाश ही निकलता है। जैसे जैसे लोहा अधिक गरम होता जाता है वैसे वैसे उसमें से अन्य रंगों का प्रकाश भी निकलने लगता है। जब वह इतना गरम हो जाता है कि उसमें से स्पेक्ट्रम (spectrum) के सभी रंगों का प्रकाश निकलने लगे तब उनके सम्मिलित प्रभाव से वह सफेद दिखाई देता है।
यदि गैसों में विद्युत् विसर्जन हो, तो उससे भी प्रकाश उत्प्ान्न होता है। जब हवा में विद्युत् स्फुल्लिंग उत्पन्न होता है तब उससे बैंगनी रंग का प्रकाश निकलता है। विभिन्न गैसों में विद्युत् विसर्जन होने से विभिन्न रंग का प्रकाश निकलता है।
प्रकाश का रंग - प्रकाश विद्युच्चुंबकीय तरंगों के रूप्ा में होता है। विभिन्न रंग के प्रकाश का तरंगदैर्ध्य भिन्न होता है। लाल रंग के प्रकाश का तरंगदैर्ध्य (६.५�१०-५ सेंमी.) सबसे अधिक और बैंगनी रंग के प्रकाश का तरंगदैर्ध्य (४.५�१०-५ सेंमी.) सबसे कम होता है। अन्य रंगों के लिए तरंगदैर्ध्य इसके बीच में होता है। विभिन्न तरंगदैर्ध्य की विद्युच्चुंबकीय तरंगों के आँखों पर पड़ने से रंगों की अनुभूति होती है। रंग वास्तव में एक मानसिक अनुभूति है, जैसे स्वाद या सुंगध। बाह्य जगत् में इसका अस्तित्व रंग के रूप में नहीं, बल्कि विद्युच्चुंबकीय तरंगों के रूप में होता है।
रंगीन पदार्थ का रंग - जब किसी प्रकाशस्रोत से निकलनेवाला प्रकाश किसी पदार्थ पर पड़ता है और उससे परावर्तित होकर (या पार जाकर) आँखों पर पड़ता है, तब हमें वह वस्तु दिखाई देती है। किसी पदार्थ पर पड़नेवाला प्रकाश यदि बिना किसी रूपांतरण (modification) के हमारी आँखों तक पहुँचे, तो हमें वह वस्तु सफेद दिखाई देती है। उदाहरण के लिए, लाल रंग के प्रकाश में देखने पर लाल वस्तु भी सफेद दिखाई देती है। वही वस्तु सफेद प्रकाश में लाल और नीले प्रकाश में काली दिखाई देती है।
अपारदर्शी या पारदर्शी, सभी रंगीन पदार्थों का रंग वरणात्मक अवशोषण (selective absorption) के कारण दिखाई पड़ता है। इसका अर्थ यह है कि रंगीन वस्तुएँ कुछ रंग के प्रकाश को अन्य रंगों के प्रकाश की अपेक्षा अधिक अवशोषित करती हैं। किस रंग का प्रकाश अधिक अवशोषित होगा, वह वस्तु के रंग पर निर्भर करता है। ऊपर के उदाहरण में कोई वस्तु लाल इसलिए दिखाई देती है कि उसपर पड़नेवाले सफेद प्रकाश में से केवल लाल प्रकाश ही परावर्तित हो पाता है, शेष सभी रंग पूर्ण रूप से अवशोषित हो जाते है, इसलिए सफ़ेद रंग के प्रकाश में वह लाल दिखाई देती है। यदि वही वस्तु हम नीले प्रकाश में देखें, तो वह हमें काली इसलिए दिखाई देगी क्योंकि वह लाल के अतिरिक्त अन्य सब प्रकाश अवशोषित कर लेती है। अत: नीला प्रकाश उसमें पूर्ण रूप से अवशोषित हो जाएगा और आँखों तक कोई प्रकाश नहीं पहुँचेगा।
यदि कोई वस्तु एक से अधिक रंग परावर्तित करती है, तो उसका मिला हुआ रंग दिखाई पड़ता है। पीली वस्तु लाल और हरे रंग का प्रकाश परावर्तित करती है। चूँकि लाल और हरे रंग का प्रकाश मिलकर पीला प्रकाश बनता है, अत: वह वस्तु हमें पीली दिखाई देती है।
पारदर्शी रंगीन वस्तुएँ कुछ रंग के प्रकाश को तो अपने में से पार जाने देती हैं और शेष प्रकाश को अवशोषित कर लेती हैं। नीले शीशे में से होकर केवल नीला प्रकाश ही जा पाता है और शेष प्रकाश अवशोषित हो जाता है। यदि पारदर्शी वस्तुओं में से होकर एक से अधिक रंग का प्रकाश जाता हो, तो उन रंगों का सम्मिलित प्रभाव दिखाई देता है।
रंगों का मिश्रण - प्रकृति में पाए जानेवाले समस्त रंग तीन प्राथमिक रंगों लाल, हरा और नीला से मिलकर बनते हैं। इन तीन प्राथमिक रंगों को मिलाने की दो विधियाँ हैं : (१) योज्य विधि (Additive method) तथा शेष विधि (Subtractive method)। इसके अतिरिक्त इन दोनों विधियों के सम्मिलित प्रभाव द्वारा भी नए रंग बनते हैं।
१. योज्य विधि - इस विधि में रंगीन प्रकाश मिलाया जाता है। यदि सफेद दीवार पर दो भिन्न रंगों का प्रकाश पड़े, ता वहाँ एक अन्य की अनुभूति होती है। लाल और हरे रंग का प्रकाश मिलाया जाए तो पीला दिखाई देता है। सभी रंग उपर्युक्त तीन प्राथमिक रंगों को विभिन्न अनुपात में मिलाने से बनते हैं। तीनों रंगों को एक विशेष अनुपात में मिलाने से सफेद रंग बनता है:
पूरक रंग (Complimentary Colours) - तीन प्राथमिक रंगों, लाल, हरा और नीला में से किन्हीं दो रंगों के मिलाने से, जो रंग बनता है उसे तीसरे रंग का पूरक रंग कहा जाता है। पीले रंग को नीले रंग का पूरक कहा जाता है, क्योंकि पीला रंग शेष दो प्राथमिक रंग लाल और हरा मिलाने से बनता है। किसी रंग में उसका पूरक रंग मिला देने से तीनों रंग इकट्ठे हो जाते हैं और सफेद रंग बन जाता है। इसलिए इसका नाम पूरक रंग पड़ा है। किसी रंग को सफेद बनाने में जिस रंग की कमी होती है उसे पूरक रंग पूरा करता है। इसे निम्न समीकरणों द्वारा अच्छी तरह समझ सकते हैं:
लाल+हरा+नीला=सफेद
लाल+हरा=नीले का पूरक
=पीला
अब
नीला+नीले का पूरक=नील्ाा+पीला
=नीला+लाल+हरा
=सफेद
इसी तरह हरे का पूरक रंग मजेंटा (magenta) है, जो लाल और नीला मिलाने से बनता है। लाल का पूरक सियान (cyan) है, जो नीला और हरा मिलाकर बनता है। तीनों को मिलाने से बननेवाले रंग चित्र २. (देखें फलक) में दिखाए गए हैं। उप्ार्युक्त वर्णन में यह ध्यान में रखना चाहिए कि 'रंग' से यहाँ रंगीन प्रकाश का अर्थ होता है, रंगीन पदार्थ का नहीं।
शेष विधि - इस विधि में रंगीन पदार्थ मिलाए जाते हैं, चाहे वे पारदर्शी हों अथवा अपारदर्शी। रंगीन पदार्थ सफेद प्रकाश में से कुछ रंग का प्रकाश हटा सकते हैं, उनमें रंग जोड़ने की क्षमता नहीं होती। इसलिए यह विध शेष विधि कहलाती है। इस विधि से नए रंग बनने का कारण यह है कि अधिकांश पदार्थ शुद्ध एकवर्णी (monochromatic) प्रकाश परावर्तित, या पारगत (transmit) नहीं करते, अन्यथा कोई दो रंगीन पदार्थ मिलाने से केवल काला रंग ही प्राप्त होता। जैसे लाल रंग के फिल्टर से केवल लाल रंग का प्रकाश ही जा पाता है। उसपर नीला फिल्टर भी लगा दिया जाए, तो लाल फिल्टर से निकला हुआ प्रकाश नीले फिल्टर में पूर्ण रूप से अवशोषित हो जाता है, अर्थात दोनों फिल्टरों का प्रकाश मिलाने से कोई भी प्रकाश बाहर नहीं जा पाता जिससे वे काले दिखाई पड़ते हैं।
शेष विध में सफेद प्रकाश में से तीन प्राथमिक रंग (लाल, हरा और नीला) हटाए जाते हैं। किसी वस्तु पर रंगीन पदार्थ का लेप, रंगीन छपाई, या रंगीन फोटोग्राफी तथा रंगीन फिल्टर शेष विधि के कारण ही रंगीन दिखाई देते हैं। इनमें तीन प्राथमिक रंग के पदार्थ होते हैं, जिनके रंग आसमानी (cyan), मजेंटा तथा पीला हैं। ये तीनों रंग योज्य विधि से पूरक रंग हैं। रंगीन छपाई में भी इन्हीं तीन रंगों की स्याहियाँ प्रयुक्त होती हैं। इन रंगों को इनके अवयवों द्वारा, या उस रंग द्वारा व्यक्त किया जा सकता है जो सफेद प्रकाश में नहीं है, उदाहरण के लिए:
पीला=हरा+लाल=-नीला
अर्थात् लाल और हरा मिला देने से पीला बनता है, अथवा सफेद प्रकाश में से नीला रंग निकाल लेने से पीला बच रहता है। इसी प्रकार
मजेंटा=नीला+लाल=-हरा
सियान=नीला+हरा=-लाल
सफेद प्रकाश में से तीनों रंग निकाल लेने से काला दिखाई देता है, अर्थात् कोई प्रकाश नहीं दिखाई पड़ता है। (यहाँ भी 'रंग' का अर्थ रंगीन प्रकाश से है)। शेष विधि चित्र ३. (देखें फलक) में दिखाई गई हैं।
आभा (Shade) - किसी एक रंग के प्रकाश की तीव्रता अधिक करने, अर्थात् सफेद रंग मिलाने से, या तीव्रता कम करने, अर्थात् काला रंग मिलाने से, रंग की आभा में अंतर आ जाता है। एकदम काला और एकदम सफेद में किसी रंग की अनुभूति नहीं होती। परंतु विभिन्न अनुपात में काला और सफेद मिलाने से जो स्लेटी रंग (gray) बनते हैं उनके अनुसार किसी भी प्राथमिक अथवा मिश्र रंग की अनेक आभाएँ हो सकती हैं। (धनवंत कािशेर गुप्त)